आज सुबह मेरे घर के सामने से एक महिला टहलने के लिए निकलीं. उनके मोबाइल में कोई भजन चल रहा था, इसलिए नहीं कि वे धार्मिक थीं, बल्कि इसलिए कि स्वयं से ऊबी हुई थीं.
हम सभी ऐसे ही हैं, अंदर से ऊबे, ख़ाली लोग. इसीलिए सुबह की सैर हो या कार/बस से ऑफिस जाना है, संगीत चालू कर लेते हैं. इसका संगीत प्रेम से कोई लेना देना नहीं है. हद तो यह है कि सुबह पक्षियों का कलरव, मीठी हवा, पत्तियों की सरसराहट जैसी कितनी जीवंत और आनंददायक घटनाएँ हो रही होती हैं, और फिर भी शोर में डूबे होते हैं. आप देखें, हर जगह लोग कितने शोर में जी रहे हैं. इसके बदतरीन उदाहरण हैं बुलेट और डीजे.
लोग इतना शोर क्यों करते हैं? दो कारण हैं: एक, अंदर का ख़ालीपन; दूसरा, लोगों को आकर्षित करने की आकांक्षा. ऊँची आवाज़ में शोर करो, तो लोग आपकी तरफ़ देखेंगे, भले गाली देने के लिए ही देखें. कुछ हैं जो समाचार चैनल्स के शोर से भरे हुए हैं. एक ही बकवास दिन भर देखते रहते हैं. फिर उस पर चर्चा करके और बकवास पैदा करते हैं. इंसान न मिलें तो डिजिटल बकवास करते हैं.
अपने साथ थोड़ा समय बताइए. विश्वास मानिए आप इतने ऊबे और ख़ाली व्यक्ति नहीं है जितना आपको लगता है. ध्यान करके मैंने जाना है कि हमारे अंदर भी बहुत सौंदर्य, आनंद, और रहस्य भरे पड़े हैं जो कि शांत बैठ कर, साँसों पर ध्यान देकर अनुभव किए जा सकते हैं. इसके अलावा प्रकृति भी एक अनोखे संगीत से भरी हुई है. यह सब एकदम निशुल्क है.
अपने जीवन को अद्भुत बनाइए.